सत्संग से विवेक तक जया सिबू | |
| एक अनुभूति विचार विमर्श की सहोदरी गीता की काव्य शैली यद्यपि है देववाणी वही महाभारत की कहानी भगवान कृष्ण की ज़ुबानी जन्मता है मनुष्य बारम्बार यही नियम है प्राकृतिक कहते इसे संसार सम्पूर्ण ज्ञान पर आश्रित कर्म योग से प्रवर्तित भक्ति से आत्मबोध रूप में ओतप्रोत धर्म क्षेत्र कुरु क्षेत्र है जिसका स्रोत जीवन मरण नित्य है स्वाभाविक पर स्वधर्मे निधनं श्रेयः यही बीज तत्त्व गीता का कृष्ण को अर्जुन चाहिए अर्जुन को कृष्ण की आवश्यकता श्री विजय भूति नीति में सफलता गोपी प्रचार केंद्र से प्रकाशित है कोशुर कश्मीरी ज़बान में अनूदित स्वर्गीय सर्वनानंद प्रेमी कृत शैली सुचारू रूप से परिष्कृत नमन ऐसे कवि हृदयों को जो शब्द को शब्दावली से देते एक नवीन उपहार गीता जयन्ती पर उनको नमस्कार |
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Jaya Sibu |