| छिन गया रह गुज़र, बिछड़ गई अपनी डगर
| ||
| | कुर्बान हुआ ये मेरा तन सो गया ये मेरा जीवन मुझे याद रखना भुला न देना मेरे सर जमीं का ख्याल रखना मेरे अपनों का ख्याल रखना छीन लिया मेरा घर आंगन जला दिया मेरा तन बदन रह गया क्या राख के सिवा बिखर गया मेरा सारा गुलशन चला मैं चला तन फ़िदा कर चला सब तुम्हारे हवाले कर चला बेदरदो ने मारा इस तरह कुछ बाकी न बचा दिल जलो की तरह ख़ाक पे मेरी तुम दीप जलाना सोया हुआ दर्द जगाना बेदरदो को सबक सिखाना कुर्बान हुआ ये मेरा तन सो गया ये मेरा जीवन मुझे याद रखना भुला न देना
छिन गया रह गुज़र बिछड़ गई अपनी डगर जाना कहां है किसको खबर क़दम क़दम पर खतरा है पीछे पड़ा दुश्मन है आ गए हम दूर कहां कोई नहीं है अपना जहां दर्द कितना गहरा है अब तो जीना मुश्किल है चिल्लाता हुआ सारा आलम कुटिलता भरा सारा आलम मन में आग सुलग रही है आग बुझाने कहां जाएं सोच समझ अब है कहां आ गए हम दूर कहां कोई नहीं है अपना जहां गद्दार गद्दारी कर गया सब कुछ हमारा लूट गया जान बचाने जाएं कहां भूखे प्यासे तड़पें यहां आसमां भी उड़ गया जमीं भी फिसल गई अब जाएं तो जाएं कहां कोई नहीं है अपना जहां
वक़्त ने कैसा सिला दिया किस मोड़ पे ला के खड़ा किया जाएं तो जाएं कहां खो गया अपना जहां आसमां ने रंग बदला चंदा ने भी संग छोड़ा वक़्त का ये फैसला किसी के मन को न भाया काले बादल छा गए खिजाए सारी चल पड़ी सब के मन को रुला पड़ी जान की हिफाज़त कैसे करें इज्जत अपनी कैसे बक्शे जिगर पर टूटा निशा बना गया खौफनाक यह मंजर है वक़्त ने गौपा ऐसा खंजर है भूल गया खुदा खुदाई उसको भी रहम न आई दर्द भरा संमदर बना गया वक़्त ने कैसा सिला दिया किस मोड़ पे ला के खड़ा किया जाएं तो जाएं कहां खो गया अपना जहां | |
|
| ||
|---|---|---|
अन्नपूर्णा कौल Annapurna Kaul. | ||
|
| ||
Nice emotional poems
Added By Deepak Ganju