जीठ्यये'र
ज्येष्ठा प्रादुर्भाव लेखक स्वर्गीय पण्डित जगन्नाथ सिबू -मुम्बई प्रकाशन वर्ष---1988 सम्पादन--श्रीमती जया सिबू |
कश्मीर आदि काल से ऋषियों मुनियों साधकों तथा कवियों की जन्मभूमि रहा है, इसी लिए आजकल भी कश्मीर को पुण्य-भूमि, ऋषि- भूमि या शारदा देश भी कहते हैं। कश्मीरी भाशा में इसे रिशिवाऽर भी कहते हैं..., जिसके फल स्वरूप यहां प्राचीन धार्मिक एवं आध्यात्मिक परम्पराएं फलती फूलती रही।इसके अतिरिक्त अपने भक्त जनों के विघ्न तथा बाधायें दूर करने के लिये भगवान शंकर ने इस पवित्र भूमि में अनेक लीलाएं की हैं और अवतरित हुए। ध्यानीश्वर, हरमुख, हरेश्वर आदि सिद्ध पीठेश्वर कहलाये जाते हैं। जहां जिस रूप से वे अवतरित हुए वहां उसी नाम से प्रसिद्ध हुये।इन में से सम्बन्धित स्थान प्रायः डल सरोवर के पवित्र तट पर विद्यमान हैं। जैसे "ज्येष्ठेश्वर" वर्त्तमान ज़ीठ्यया॒र, "सर्वेश्वर" सरिश्वर, "हरेश्वर" वर्त्तमान हरिश्वर हैं। यह तीर्थ शालमार पर्वत के पीठ पीछे की ओर है।
इसी शृंखला में "शिव सूत्र" का उद्गम पल/sacred rock भी महादेव पहाडी के आंचल में ही है। वस्तुतः डल सरोवर का तट पवित्र है जो महादेव शंकर का विहार स्थल है। इतना ही नही गुप्तगंगा व "ईश-विहार"-- इशबर भी इसी क्षेत्र में आते हैं। "गुप्त-तीर्थ" वर्त्तमान गोपीतीर्थ तथा शतधारा तीर्थ भी आशुतोष-शंकर की पवित्र लीला से सम्बंध रखते हैं। अतः इन सभी तीर्थ स्तलों का अपना सम्बन्धित इतिहास है। प्राचीन पौराणिक परम्पराएं जहां जितनी सजीव रही, वहां इन तीर्थों का उतना अधिक महत्व रहा।यह स्वाभाविक बात है। इसके फलस्वरूप कई तीर्थ प्राचीन पौराणिक परम्परागत भावनाओं को जगाते रहे; कई तीर्थ पौराणिक परम्पराओं के अभाव के कारण नामशेष ही रहे। अतः तीर्थ के विषय में पौराणिक परम्परागत गाथाओं का महत्व पूर्ण स्थान है। संदर्भित तीर्थ-महात्म्य ही धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से हमारा मार्ग दर्शन करते हैं। प्रायः यही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रसुत लेख भी "श्री संहिता" की पौराणिक गाथा की महत्वपूर्ण कडी है। जिसका सम्बन्ध समुद्र मन्थन से है। जब देवताओं ने दानवों का साथ मिलकर सागर का मन्थन किया उस महाप्रयास से उन्हें चौदह रत्न प्राप्त हुये जिन में लक्ष्मी और विष भी थे। देवताओं ने तेरह रत्नों पर अपना अधिकार जताया, परन्तु विष के भारे में दोनों पक्ष परेशान थे की इस ज़हरीली वस्तु का क्या होगा।किसे यह ग्रहण करना पडेगा। किसी को यह विष अपने गले उतारना ही था।किसे यह ग्रहण करना पडेगा----? देवताओं और दानवों की इस द्विधा को देखकर भगवान सदाशिव ने "जगतस्य कल्यार्णार्थम्" -- जगत का कल्याण करने के लिये, नियन्त्रण तथा शान्तिमय वातावरण का भाव उत्पन्न करने के लिये,सर्वविनाशी हलाहल विष स्वयं ही पी लिया जिसके कारण शिव नील कण्ठ कहलाये--शिव ने विष तो पी लिया, परन्तु उससे उनका कण्ठ नीला पड गया ।इसी लिये शिव को प्रसन्न करने के लिये "नील कण्ठ नमोस्तुते" का पाठ भी करते हैं। उनका नाम मृत्युंजय महादेव भी पड गया।साक्षात लक्ष्मी का वरण स्वयं विष्णु ने किया ऐसी परिस्थिति में दानवों के मन में वैमनस्य, विषमता तथा क्रोद्ध का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। उन्हों ने लक्ष्मी को छीन कर "गोपादरी" की गुफा में छिपाया जिस कारण यह स्थान "गोप्यागार"--वर्त्तमान गुपकार कहलाता है। ----to be continued |
*Pandit J. N. Siboo (1919--2001), served as a senior teacher. Later, promoted as Head Deptt of Sanskrit & Hindi,Govrnment Oriental College,Srinagar. Authored "Jyestha Pradurbhava" in Sanskrit with Hindi translation. He authored a series on Kashmir Shaivism, published in MADHYMA-PATRIKA Hindi Journal. Before migration to Mumbai, he was associated with the Shri Roopa Bhavani Sharda Peeth Research institute, where he completed the Kashmir Shakta Vimarsha. He would also write for Hindi Section of Koshur Samachar. He has written on the Bijaksharas of the Shakti tradition of Kashmir. He was awarded the Central Hindi Directorate Award, under Ministry of Human Resources, for Kashmir Shakta Vimarsha. |
Copyrights © 2007 Shehjar online and KashmirGroup.com. Any content, including but not limited to text, software, music, sound, photographs, video, graphics or other material contained may not be modified, copied, reproduced, republished, uploaded, posted, or distributed in any form or context without written permission. Terms & Conditions. The views expressed are solely the author's and not necessarily the views of Shehjar or its owners. Content and posts from such authors are provided "AS IS", with no warranties, and confer no rights. The material and information provided iare for general information only and should not, in any respect, be relied on as professional advice. Neither Shehjar.kashmirgroup.com nor kashmirgroup.com represent or endorse the accuracy or reliability of any advice, opinion, statement, or other information displayed, uploaded, or distributed through the Service by any user, information provider or any other person or entity. You acknowledge that any reliance upon any such opinion, advice, statement, memorandum, or information shall be at your sole risk. |