शब्द है शिव जया सिबू | |
मेरा शिव संकल्प अवश्य है वैदिक शिव ही है-- वैदिक श्रुति वही बी ज रोपण् से प्रस्फुटित हुआ कुछ् भी सुनायी देगा- कोई भी स्वर दिखेगा वेदांग और स्मृति मानस शक्ति नियन्त्रित करने की---- भव्य भाव में अनुसरित होने की अनुप्राणित करने की मन की स्थिति शिव है, उसी मै रसे बसे है शिव संकलप वही है, चेतन स्वरुप---- आत्म स्वरूप निराकार । उसी का नाम विश्वातीत है भ्रमण करता है मन , चहों दिशाओं मे पवन की गति से है -- मनस -- स्थिति ज़्यादा ते और सौरमण्डल मे भी। शिव शब्द है शब्द शक्ति लिप्त है मन की वाणी मुख की वाणी से अधिक तेज़ होती है--- हे शिव! शब्द है शिव मुझे अपने भावों तक ही रखो सीमित | |
| |
Jaya Sibu writes in Hindi and Kashmiri. She is the recipient of Bhagwan Gopinath Research Fellowship. Some of her Kashmiri poems have been translated by Amrita Pritam in Hindi. Her publication includes 'Mantrik Bhajan Dipika' in Kashmiri verse based on the Kashmiri Beej Mantras of the Shaktivad tradition. 'Bhagwan Gopinath evam Dharmik Chintan' in Hindi is under publication. She is a regular contributor to various Hindi and Kashmiri magazines and piublications. |
"Shabd hi Shiv" eek Anugrahit manas ki kewl Kalpana matra hi nahi hai, aapetu yeh a yogi ki saakar bhavnavoka ka aatma chintan prakitya hai.
Added By Ashwani wanganeo
"Shiv Hai Shabd" from the pen of Shiva Bakhtini gives us insight into the spiritual essence of the Divine Word "Shiv". We are grateful to poetess Jaya Sibuji for making us understand the real significance of the word "Shiva".
Added By Gopinath Raina