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जीवन के दर्पण में जांका
पाया जीवन दुन्दला सा , जिस जीवन में कायर्ता हो वह जीवन है निर्बल सा I जन्म जन्म से अपना स्वार्थ हर युग में देखा मानव ने , हो निस्वार्थ हर इक प्राणी यह प्रेरणा हो सब जन में I निर्दयता है जिस के मन में वह क्या जाने परपीड़ा , जिसने व्यथा को न सहा मरहम कैसे बने किसीका I आज के इस कलयुग ने सब को है बिखर दिया , न लक्ष्मण जैसा भाई रहा न सहनशील, त्यागमय सीता I भय है कारण सब चिंता का त्याग कर इसे विजयी बनो , मानव हो, मानव बन कर रहो मानवता के अनुयायी बनो I |
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![]() Currently is in the process of writing a book - a historical fiction based on the mass exodus of Kashmiri Pandits. She has been encouraged from the articles in Shehjar for providing in depth knowledge and understanding of Kashmiri culture and heritage. |
Nice poem. i also Write, is there something I can contribute in this website for Kashmir, Like Poems, Shayari, jhumle ??
Added By Janesh Koul