यह भी है प्रवास में हिन्दी की सेवा डा चमन लाल रैना रेलिजस स्टडीज़ डिपार्टमेन्ट फ्लोरिडा इन्टरनेशनल यूनिवर्सिटी भाषा वास्तव में अपने भावों को प्रकट करने के लिये प्रभु की अनुपम देन है। भाषा को संवारना और संजोये रखना सभ्य समाज का कर्तव्य है। इसी कारण प्रवास में भी सदा मातृ भाषा की याद आती रहती है। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए----, प्रवास में मातृ भाषा के कुछ शब्द सुनकर, हम सभी प्रसन्न-चित्त क्या मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं। उसी सन्दर्भ में आज मै कुछ शब्द श्री आदित्य प्रकाश सिंह जी के प्रति कह रहा हूं। "हमारे लिये बहुत ही प्रसन्न्ता का विषय है कि इस वर्ष अप्रैल २००९ में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति द्वारा आयोजित "हास्य कवि" सम्मेलन के अवसर पर श्री आदित्य प्रकाश जी को "भाषा सम्मान" से अलंकृत किया गया। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति ने हिन्दी के प्रेमियों का आदर किया है ।चाहे वे भारतीय नगरिक हो अथवा प्रवासी भारतीय। यथार्थ में ,बोलचाल की भाषा जननी और जन्मभूमि से जुडी होती है; हां, किसी भी पृथ्वी के खण्ड से किसी भी भाषा का प्राथमिक सम्बन्ध अवश्य होता है। संस्कृत भाषा हिन्दी की जननी है ; अतः हिन्दी भाषा में तत्सम और तद्भव शब्दों का होना सांस्कृतिक एवं सहित्यिक विकासवाद ही है,और क्या हो सकता है। इसी लिये हिन्दी में तत्सम तथा तद्भव शब्दों की बहुतात है।मातृ भाषा हिन्दी के साथ,और भारत की राष्ट्र भाषा के साथ लगाव रखना एक हृदय होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यही हमारी थाती है। सम्भवतः इसी उद्देश्य से भाषाविद् श्री आदित्य प्रकाश जी डेलास रेडियो 'सलाम नमस्ते" के कविताञ्जली कार्य-क्रम से हिन्दी प्रेमियों को अपने निकट लाने में सफल हुए हैं। हिन्दी भाषी तथा हिन्दी प्रेमी के मन मस्तिष्क को उल्लासित करने वाला रेडियो सलाम नमस्ते का एक घण्टे का कार्य क्रम अपने आप में ही एक ज्वलन्त प्रमाण है। । एक घण्टे में आदित्य प्रकाश जी अमेरिका के हिन्दी लेखकों को, तथा कविता से रुचि रखने वालों को शुद्ध हिन्दी वातावरण मे लाते हैं। उस समय ऐसे लगता है कि आवाज़ की गूंज हमारे अन्तः करण को कभी कवि प्रसाद से, कभी कवि पन्त से, कभी दिनकर से कभी महादेवी वर्मा से, तो कभी मीरा से और न जने किन किन हिन्दी के श्रेष्ठतम कवियों से मिलाते है।इतना ही नही---- प्रभु ने आदित्य जी को मोहित करने वाली सुरेली राग भी दी है जिससे लगता है कि कहीं न कहीं कवि सम्मेलन सम्पन्न हो रहा है। कविताञ्जली कार्य-क्रम के अन्तर्गत, मुझे " शब्द- ब्रह्मन्" तथ 'अमृता प्रीतम' पर दो बार उनसे बात चीत करने का अवसर मिला, तो मुझे लगा कि इन में कितना अपनापन है और वार्त्तालाप हमारे लिये बहुत ही प्रसन्न्ता का विषय है कि इस वर्ष अप्रैल २००९ में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति द्वारा आयोजित "हास्य कवि" सम्मेलन के अवसर पर श्री आदित्य प्रकाश जी को प्रवासी सम्मान से अलंकृत किया गया। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति ने हिन्दी के प्रेमियों का आदर किया है ।चाहे वे भारतीय नगरिक हो अथवा प्रवासी भारतीय ।यथार्थ में ,बोलचाल की भाषा जननी और जन्मभूमि से जुडी होती है; हां, किसी भी पृथ्वी के खण्ड से किसी भी भाषा का प्राथमिक सम्बन्ध अवश्य होता है। संस्कृत भाषा हिन्दी की जननी है अतः हिन्दी भाषा में तत्सम और तद्भव शब्दों का होना सांस्कृतिक एवं सहित्यिक विकासवाद ही है,और क्या हो सकता है।मातृ भाषा हिन्दी के साथ,और भारत की राष्ट्र भाषा के साथ लगाव रखना एक हृदय होने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। यही हमारी थाती है। सम्भवतः इसी उद्देश्य से भाषाविद् श्री आदित्य प्रकाश जी डेलास रेडियो 'सलाम नमस्ते" के कविताञ्जली कार्य-क्रम से हिन्दी प्रेमियों को अपने निकट लाने में सफल हुए हैं। हिन्दी भाषी तथा हिन्दी प्रेमी के मन मस्तिष्क को उल्लासित करने वाला रेडियो सलाम नमस्ते का एक घण्टे का कार्य क्रम अपने आप में ही एक ज्वलन्त प्रमाण है। । एक घण्टे में आदित्य प्रकाश जी अमेरिका के हिन्दी लेखकों को, तथा कविता से रुचि रखने वालों को शुद्ध हिन्दी वातावरण मे लाते हैं। उस समय ऐसे लगता है कि आवाज़ की गूंज हमारे अन्तः करण को कभी कवि प्रसाद से, कभी कवि पन्त से, कभी दिनकर से कभी महादेवी वर्मा से, तो कभी मीरा से और न जने किन किन हिन्दी के श्रेष्ठतम कवियों से मिलाते है।इतना ही नही---- प्रभु ने आदित्य जी को मोहित करने वाली सुरेली राग भी दी है जिससे लगता है कि कहीं न कहीं कवि सम्मेलन सम्पन्न हो रहा है। कविताञ्जली कार्य-क्रम के अन्तर्गत, मुझे " शब्द- ब्रह्मन्" तथ 'अमृता प्रीतम' पर दो बार उनसे बात चीत करने का अवसर मिला, तो मुझे लगा कि इन में कितना अपनापन है और वार्त्तालाप बडाने की क्षमता भी।" अपने इस आलेख के साथ उन्ही की लेखनी से "मेरी सृजन-यात्रा", हिन्दी प्रेमियों के सामने प्रस्तुत करने में मुझे अति प्रसन्न्ता होती है। "मेरी सृजन-यात्रा" आदित्य प्रकाश सिंह (वर्ष 08 के प्रवासी सम्मान से विभूषित हिंदी सेवी)
नेपाल प्रवास के समय एक औस्ट्रेलियन यात्री ने वॄक्षों के प्रति मेरी जिञासा बढा दी, कारण, वह विश्व के विभिन्न देशों के वॄक्षों पर अध्यन कर रहा था। नेपाल से जब मैं भारत वापिस आया, यही जिञासा वॄक्षों के प्रति एक विशेष अनुराग पैदा कर दी। इसी क्रम में कुछ मित्रों के साथ मिल कर पर्यावरण संगठन बना डाली। इस संगठन का मूल उद्देश्य था- "परमपरागत वॄक्षों का रोपण एंव संरक्षण।" हमारे भारतीय वॄक्ष नीम, आम, अशोक, बरगद, पीपल, आदी ऐसे कई वॄक्ष हैं जो हमारी संस्कॄति से जुडे हुए हैं। पूजा, विवाह, यञ जैसे अवसरों पर इन सबों कि अपनी अपनी महत्ता है। वेदों में एक वॄक्ष को दस पुत्रों के समान माना गया है। वॄक्ष का हर अंग मनुष्य जीवन में किसी ना किसी काम आता ही है। ये प्रक्रिति के संरक्षक देव हैं। श्वास के लिये औक्सीजन के साथ साथ ईंधन, औषधी, फल, आदि तथा मरणों परांत, यही वॄक्ष कोयला एंव पेट्रोल में परिवरतित हो जाते हैं। सचमुच प्रकॄति का रहस्य आम मनुष्य के लिये रहस्य ही बना रहता है। इसॆ समझना ही योग की शुरुवात है। प्रकॄति से एक रागात्मक संबंध हो जाये, तो वही तुलसी और कबीर बन जाते हैं। राम, कॄष्ण, विवेकानंद ने प्रकॄति को जाना, तभी तो दे गये हमें जीने के लिये अमरवाणी। १९९८ में अमेरिका प्रवास का योग बना और तब से मैं अमेरिका के डैलस शहर में हूँ। देश छूटा, लोग छूटे पर छूटा नहीं माटी प्रेम। अमेरिका सचमुच एक परिकल्पनाओ और संभावनाओ का देश है। सुबह-दोपहर शाम द्रुत गति से यहाँ करवट बदलती है, और रात का आलम तो पूछिये ही नहीं। मानो संध्या सुंदरी सोलह श्रॄंगार कर अठखेलियाँ करती हैं। अमेरिका के कई शहर " City that never sleeps" के नाम से जाने जाते हैं। शहरीकरण अपने साथ कई अच्छाई-बुराई का चिट्ठा खोलती है जो यहाँ दिखता है। यहाँ ’घर’ घर नहीं, मकान है। वह प्रेम और स्नेह कहाँ? किसी ने सच ही कहा है,
एक पर्वतारोही की पुस्तक पढी़ थी जिसकी एक बात अमेरिका में साफ-साफ दिखती है। उसने लिखा था, "पहाड़ पर १७-१८ हजा़र फी़ट की ऊँचाई तक पौधे कहीं-कहीं दिखते हैं और साथ-साथ कीट-पतंग भी। इस ऊँचाई के बाद, पौधों का दिखना बंद हो जाता है। जैसे ही पौधों का दिखना बंद हुआ, कीट-पतंग भी गायब हो जाते हैं। ठीक वही बात विदेशों में लागू होती है कि जैसे ही भाषा छूटने लगती है, साथ-साथ संस्कॄति भी लुप्त होने लगती है। आख़िर, "भाषा ही संस्कॄति को जीवंत रख सकती है।" भाषा हमें एक सूत्र में बाँधती है, अपना होने का एह्सास दिलाती है। भाषा-साहित्य में समाहित है हमारी भावनाएँ। प्रसाद जी कि इन पंक्तियों को जब मैं पढ़ता हूँ:
लगता है भारतीय संस्कॄति जीवंत हो उठती है। अमेरिका प्रवास में सामजिक संस्थाओं से जुड़ कर हम भारतीय कुछ कर पाते हैं। प्रणाम करता हूँ उन भारतवंशियों को जिनके चलते आज अमेरिका के हर शहर में मंदिर स्थापित हैं। वैदिक मंत्रों का पाठ, अग्निदेव का आहवान आज भी हजारों वर्षों से चला आ रहा है। वेदों की रचना अपने आप में अदभुत कार्य है जिस कारण विश्व की किसी भी भूखंड में रहने के बावजूद हम भारतीय होने का गौरव प्राप्त करते हैं। ट्रिनिडैड, टोबेगो, फिजी, मौरिशस में आज भी हज़ारों वर्ष से चले आ रहे रामायण का वही ज्ञान, प्रेम एवं स्नेह-मंत्र अनवरत चला आ रहा है। आज प्रसन्नता हो रही है कि विश्व के कोन-कोने में भारत प्रगति के द्वार खोल रहा है। विदेश में भीड़ में अकेले खो ना जायें, इसके लिये सामाजिक संस्थाएं मंदिर, देशी पर्व, त्यौहार, उत्सव अकेलेपन को अवश्य दूर करते हैं और व्यक्ति अपने देश से जुडा़ महसूस करता है। सामुदायिक रेडियो जहाँ भारत पाकिस्तान और बांगलादेश के लोग एक मंच पर "देसी" बन कर अमेरिका में अपनी पहचान बना पाने में सक्षम हो पाते हैं। दो वर्ष पहले, एक नया रेडियो स्टेशन स्थापित हुआ, "रेडियो सलाम-नमस्ते।" जिसे हर भारतीय ,पाकिस्तानी अपना रेडियो समझता है ।
जयपाल रेड्डी जिन्होंने रेडियो स्टेशन की शूरूआत की एक अच्छा क़दम उठाया कि वीकेन्ड में हर भाषा पर कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाय। आज इस रेडियो से हिन्दी, उर्दु, तेलुगु, तमिल, गुज्रराती, पंजाबी एवं नेपाली भाषा में एक-एक घन्टे का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। हिन्दी की जिम्मेवारी डा. नन्द्लाल सिंह ने ली है, नन्द्लाल जी एवम देव प्रकाश ने कविता पर विशेष कार्यक्रम 'कवितांजली' की शुरुआत की फ़रवरी,२००७ से डलास शहर के लिये यह एक नवीन प्रयोग था। दरअसल 'कवितांजली' अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा संचालित होता है । करीब ४-५ कार्यक्रम के बाद इसका भार मेरे कंधों पर सौंप दिया गया। याद है पहली बार रेडियो पर मैने गोपाल सिंह नेपाली जी की कविता "सरिता" जो मुझे बचपन से प्रिय थी सस्वर गाया । लोगों के फ़ोन से प्रशंसा मिली और मेरा अनुराग रेडियो से बढ़ने लगा।
मैं छंदबद्ध कविता पसंद करता हूँ, अतः स्वयं लय बद्धकर प्रसाद, पंत, महादेवी, दिनकर, निराला की कविताओं को सस्वर गा कर पाठ करने लगा। साहित्यकारों में जयप्रकाश मानस जी की "
अपनी बात
"
(सॄजनगाथा-संपादकीय)
की बातें मेरे लिये पथ का प्रदीप बनी। ऐसे कार्यक्रम में हमारी यही कोशिश रही कि विश्व के कोने-कोने से कवि इस मंच पर जुड जायें। इसी प्रयास में, भारत एंव अमेरिका के कविगण ने काफी सहयोग दिया। भारत के जिन कवियों ने इस रेडियो कार्यक्रम से अपना काव्य पाठ किया, उनमें प्रमुख कुमार विश्वास, सुनील जोगी, राजेश चेतन, ओम व्यास, पवन दीक्षित, मनोज कुमार मनोज, दीपक गुप्ता, अर्जुन सिसोदिया, मनीषा कुलश्रेष्ठ, डाँ कविता वाचकनवी आदि रहे। जबकि प्रवासी कवियों में: अंजना संधीर, लावन्या शाह, इला प्रसाद, अभिनव शुक्ल, रेखा मैत्र, प्रियदर्शनी, कुसुम सिंहा, देवेन्द्र सिंह, अर्चना पांडा, रेनुका भटनागर, सुधा धींगरा, हरिशंकर आदेश, डाँ ज्ञान प्रकाश, शशी पाधा, कल्पना सिंह चिटनिस, आदि ने काव्य पाठ कर इस कार्यक्रम को पुष्पित एंव पल्लवित किया है। साहित्यकारों में जयप्रकाश मानस (सॄजनगाथा) का समय-समय पर विशेष योगदान मिला जिसने के प्रति मेरा सदा आभार-भाव बना रहेगा । आज इस कार्यक्रम को सुनने हेतु अमेरिका के विभिन्न शहरों में साहित्य-प्रेमी प्रतीक्षारत रहते हैं जो भाषा-समृद्धि हेतु प्रसन्नता की बात है। अभी हाल में महाकवि आदेश जी ने पहली बार इस कार्यक्रम को सुना तो अपना अनुभव काव्य में ही भेज डाला (कुछ पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं)-
"सॄजन सम्मान" ने मेरी हिंदी सेवा (विदेश में) को अलंकॄत कर विश्व सामाचार बना दिया है। धन्य हैं वह लोग और धरती जहाँ आज भी साहित्य-संस्कॄति को उचित मान-सम्मान मिल रहा है। (सृजन-सम्मान, छत्तीसगढ़ द्वारा प्रवासी सम्मान -2008 प्रदान करने के अवसर पर जारी स्मारिका से) | |
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Hindi Kii Sewaa karna janani Aur Janma Bhumii Kii Sewa Karna hai. Radio prasaran ke madhyam se yah Kaarya Aap dattChitta hokar kar Rahe Hai. Atah Badhaayi Ke Paatra Hai. Jaya Sibu
Added By Jaya Raina
Dear Aditya Ji, You are doing nicework through Kavitanjali Program in the States. We listened to the Bansuri Vaadan of Kalhan Raina and the Karma veer recitation by Vibhasa Raina. Thus you encourage speaing of Hindi in the States through radio. The introductory note by Dr Raina is marvellous. Dr Abhinav Kamal & Sandhya Kaul
Added By Abhinav Kamal