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नमन पुष्प रंगों ने जैसे अनन्त को समेट लिया है कैनवास पटल से जैसे करार किया है है बह्मांड आज एक तुलिका के वश में देखो जैसे पूरी श्रष्टि ने वरदान दिया है ॥ इस कैनवास के पटल खुल गए हैं जहां उस आकाश की सीमा बस गई है वहाँ माँ सरस्वती धन्य है आप की महिमा वरना यह तुच्छ सेवक राह पाता कहाँ ॥ इन्द्रधनुष के रंगों ने दीप्ति है सजाई जैसे सुरमयी कोयल ने कूक है सुनाई पर्वत के शिखर से शंखनाद है आया ध्वनि के पहलू में पूर्ण लीला है समाई ॥ सर्वस्व का निर्माण तू ने किया है ईश्वर हे ब्रहमाण्ड के अस्तित्व के जगदीश्वर इन रंगों की बहार में तू निरंतर चलाना हे परमपिता, हे दयानिधान, हे परमेश्वर ॥ देदो मुझे शक्ति आह्लादित हो जाऊं मैं तेरी ही प्रेरणा के रंगों से गीत गाऊं मैं इस रवि की कल्पना न अंत हो कभी देदो वरदान आज तेरी प्रीत सजाऊं मैं ॥ रवि धर |
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